शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

मूर्ख दिवस की जय बोलो

महामूर्ख दिवस की पूर्व संध्या पर दुनिया के तमाम समझ-समझ कर नासमझ लोगों का हार्दिक अभिनन्दन। कितनी सदियां बीत गयी हाय तुम्हें समझाने में। लोगों ने कितनी बार वही रटे रटाये मंत्र का जाप घिसे-पिटे तरीके से सुनाया ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ पर अपने दुनिया भर के मूर्ख कामरेडो ने दूर दूरदृष्टि और पक्का इरादा नहीं छोड़ा। अपनी परम्परा को पीढ़ी-दर पीढ़ी बुलन्दी की सीढ़ी पर चढ़कर फहराने में कोई कसर न छोड़ी। दृढ़ विश्वास के साथ कहते रहे कि ‘मूर्खता हमारा जन्म सिध्द अधिकार है।’
मूर्खता दिवस की इस पूर्व संध्या पर इस महामूर्ख मूर्खता की अधिष्ठात्री देवी की विधि विधान के साथ पूजा-अर्चना करते हुए नतमस्तक हुआ। एक प्रश्न बराबर सालता रहा कि मूर्खता की देवी तुम इतनी पापुलर क्यों नहीं हो जितनी की देवी सरस्वती। मूर्खता की अधिष्ठात्री देवी जोर से खिलखिला पड़ी ‘अरे महामूर्ख भक्त, मेरा अस्तित्व सृष्टि के प्रारम्भ से रहा है। पहचान ने वालों ने मुझे पहचाना। समझने वालों ने मुझे समझा। समझने वालों की तादाद तो अब इतनी बढ़ गयी है कि सांसद, विधायक व मंत्री से लेकर संतरी तक मेरे मुरीद बन गये हैं। महामूर्ख अभियान को आगे बढ़ाने में तन-मन से लगे हुए हैं। रही देवी सरस्वती की बात तो मेरी वजह से ही आज उनका वजूद है। सोचने की बात है कि अगर अंधेरा न होता तो उजाले को कौन पूछता? अज्ञान ने ही ज्ञान का रूतबा बढ़ाया। महामूर्ख दिवस की पूर्व संध्या पर मैं मूर्खता की देवी को एक एक शब्द आत्मसात करने का प्रयास करता रहा। तुम्हीं बताओ भला मैं कहां नहीं हूं? तुम्हारे देश के लोग जब स्वाधीनता की लड़ाई में विदेशी सामानों का बहिष्कार कर रहे थे तो कितने लोगों ने उन दीवानों को मूर्ख कहकर नवाज़ा। लादेन मियां के चक्कर में अमरीका हथियारों से लैस दिखा तो बहुत से बुजर्गों तक ने अमरीका की उस कार्रवाही को मूर्खतापूर्ण कहा। दूर मत जाओ। अपने शहर में ही देखो। बिना सड़क चौड़ी किये जब सड़क पर डिवाइडर बनाये गये तो शहरवालों ने इसे प्रशासन का मूर्खतापूर्ण कदम बताया। भला प्रशासन के परकोटे वाले मूर्ख हो सकते हैं? सीधी सी बात है कि जब एक ही बात दूसरे के दिमागी धरातल पर खरी नहीं उतरती तो लोग ‘मूर्ख’ कह उठते हैं। जनाब कालिदास के बारे में कहा जाता हैं कि वह सबसे बड़े मूर्ख थे जो उसी डाल को काटने में जुटे थे जिस पर बैठे थे। कोई कुछ कहे मगर कालिदास मेरे सबसे बड़े फैन थे। किसी ने उनसे पूछने की जहमत की? या उनकी परिस्थितियां समझने की कोशिश की कि वह ऐसा क्यों कर रहे थे? आतंकवादियों को मूर्ख कहते हैं क्योंकि वो मौजूदा व्यवस्था से संतुष्ट नहीं हैं। इसी तरह आजादी के दीवानों को भी अंग्रेज लोग मूर्ख आंतकवाद कहा करते थे। विधार्थियों की बात शिक्षकों की समझ में नहीं आती और शिक्षकों के पढ़ाने का मैटर विधार्थियों के पल्ले नहीं पड़ता तो एक दूसरे को मूर्ख कहने लगते हैं। इसलिए सभ्य मानव होने की नगड़िया पीटते आज के समाज में भी अगर झांककर देखो तो मेरा ही पलड़ा भारी दिखाई पड़ता हैं।

जय हो मूर्खों की मूर्ख मूर्खता देवी तुम्हारी कृपा अपरम्पार है। ऐसी साधना से विरत होकर अगर कोई अपनी काबलीयत दिखाने की कोशिश करता है तो निश्चय ही वह भक्तिमार्ग से विचलित हो गया होता है। वह तो भला हो फ्रान्स के उस चार्ल्स प्रथम का जिसके जमाने में कोई सूचना जनता के कुछ लोगों तक न पहुंचने के कारण व मूर्खता की देवी के अनन्य उपासक बताए गये और तभी से मूर्ख दिवस मनाया जाने लगा। आज मूर्खों की तादाद लम्बी देखकर प्रसन्नता हो रही है और वह दिन दूर नहीं जब लोग सरस्वती को भूल जायेंगें। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ की मंत्र साधना फालतू बकवास समझ बैठेंगें। अब तो जन-जन तक पहुंचना है ‘मूर्ख दिवस’ जिन्दाबाद। मूर्खता की देवी तुम्हारी जय हो।

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