मंगलवार, 17 अगस्त 2010

राहत की चाहत

इन दिनों मीडिया वाले खास तौर से इलेक्ट्रानिक मीडिया वालों के पास बस तीन ही मुद्दे रह गये हैं। पहला सुनामी लहरों से हुयी क्षति के आंकड़े गिनाना,दूसरा सुनामी लहरों से दुनिया को बचाने के लिए साईंसदानो और ज्योतिषियों में नया जोश भरना और मदद के लिए लोगों से अपील करना। तीसरा मुददा है आज उनके सामने तमिलनाडु सरकार में राजनीति की सुनामी लहरों को नजदीक से पढ़ना। महीने पन्द्रह दिनों तक यही सिलसिला चला करता है। उसके बाद सब टॉय-टॉय फिस्स।
इस वक्त न तो आलू प्याज और न चीनी गुड़ के बढ़ते हुए दामों से देश की जनता को निजात दिलाने की कोई चर्चा हो रही है। हो भी रही है तो बड़ी दबी जुबान से हो रही है। सत्ता के गलियारे में मालपुआ उड़ाने वाले नेता जी से जब मैंनें चीनी की चाशनी पर बात की तो वह हंसते-हंसते लोट-पोट गये। कहने लगे यह तो बखुदा बहुत अच्छा हो रहा है। जोर का झटका धीरे से देते हुए उन्होंने फरमाया कि अब दो बूंद जिन्दगी के लिए हाय तौबा मची हुयी है। उसी के लिए कुछ लोग सन्नाटी रात में अपने बीवी के कान में फुसफुसाते सुने गये हैं कि मेरे दफ्तर चले जाने के बाद कोई आकर मिन्टुआ,चिन्टुआ और सादिया को दो बूंद जिन्दगी के बारे में कुछ कहे तो भीतर से दरवाजे की कुण्डी चढ़ा लेना क्योंकि मुझे तो इसमें भी कोई चाल दिखाई देती है। लोग तो यहां तक कहते हैं ये दो बूंद वाले हमारे बच्चों को नामर्दी का ड्राप पिला रहे हैं। एक मुल्ला जी ने तो कह दिया कि हमारे मजहब में तो बच्चों की पैदाइश को रोकना मना हैं। क्योंकि बच्चें अल्लाह ताला की नियामत हैं। इसी लाइन पर अगर सोचा जाये तो सुनामी लहरों का कहर बरपा करना कुदरत का करिश्मा हैं। जनसंख्या पर चिन्ता जताते हुए कभी माल्थस साहब ने रिसर्च किया था कि जब खाद पदार्थों की अपेक्षा जनसंख्या बहुत आगे बढ़ जाती है तो यूं ही प्राकृतिक आपदाओं से उन पर कहर बरपा करके एडजस्टमेंट किया जाता है। इसी तरह इम्पोर्टेड फ्रेम वाले चश्मे को नाक पर चढ़ाते हुए बोले—‘देखो भाई हमने मलेरिया जड़ से उखाड़ फेंका भले उसकी जगह लवेरिया पनपी हो। हमने दो बूंद जिन्दगी से पोलियो को भी लगभग खत्म कर दिया है। हाथी निकल गया बस दुम बाकी रह गयी है। उसे भी जोर लगाकर निकालने के लिए इस जमाने के बड़े-बड़े लोग लगे हुए हैं। अब आप ही सोचिए कि जब मलेरिया, हैजा जैसी खतरनाक बीमारियां देश में छूमन्तर हो सकती हैं तो साला यह शुगर वाला रोग क्यों नहीं भागेगा? इसलिए उसे भगाने के लिए सबसे अच्छी तरकीब चीनी का दाम बढ़ाना है और बढ़ाते जाना है। सुर्ती मलकर नेता को खिलाते हुए एक और सवाल किया,किरासन तेल और गैस सिलेण्डर की बढ़ती मंहगाई पर आप क्या कहना चाहते हैं?इतना सुनते ही फौरन फर्श पर खैनी थूकते हुए बिगड़कर नेता जी बोले—अमां एकदम्मे से कूढ़मगज हो क्या?मोबाइल का दाम हम जो घटाते जा रहे हैं उसकी तारीफ क्यों नहीं करते जी? किरासन और गैस सिलिण्डर भी कोई मुददा है?पहले नहीं था तो क्या ढिबरियां नही जलाई जाती थी या लकड़ी के बुरादे पर बना खाना नहीं खाते थे?बातचीत चल ही रही थी कि कुछ लड़कियों का झुण्ड डिब्बा लिये दिखाई पड़ा। नेता जी फौरन कूद कर पीछे बैठकर यह कहते हुए नौ दो ग्यारह हो गये कि—कि चलूं नहीं तो अभी ये स्कूली लड़कियां गले पड़कर आपदा राहत कोष के लिए चन्दा मांगेगी। आखिर में झेलना मुझे पड़ा। आगे बढ़ा किसी तरह तो एक साहब जो सिर्फ कभी-कभी समाजसेवा का काम करते हैं और प्रायः बन्दे के धंधे का मौका ढूंढ़ा करते हैं। उन्होनें एक रसीदबुक थमाते हुए कहा ‘भैया यह रसीद है सुनामी लहरों से पीडत लोगों के सहायतार्थ चन्दा इकट्ठा करने के लिए। मैंने लाख समझाया कि मैं अभी-अभी स्कूल की छात्राओं को चन्दा देकर आरहा हूं। मगर वह माने नहीं और बतौर उधार एक सौ एक की रसीद काट दी।
देने को तो मैंने दे दिया लेकिन है कि क्या गारण्टी जो यह रकम पीडि़तो तक पहुंच ही जाए?कई बार ऐसी आपदायें आती रहीं,लोग तबाह और बर्बाद होते रहें और सहायता के नाम पर ठगे जाते रहे लेकिन जनता की जनता के लिए और जनता का प्रोग्राम गतालखाते में ही जाने की खबर लगी रही। मैं छोटी सी जुबान वाला एक अद्द मामूली आदमी कह ही क्या सकता।

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