शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

राजा की आयेगी बारात

भई जिस हसीना बिजलीबाई का दीदार पाने को अपने शहर वाले तरसते रहें। आज वह जब महफिल में रूबरू होकर ‘इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा’ पर जी खोलकर थिरक उठी तो लोगों की बाछें खिल गई। बहुत से लोग तो मुंह बाये हुए बिजलीबाई की बांकी अदा पर जान छिड़क उठे। अपनी हैरत भरी निगाहों को देखकर गली के नुक्कड़ से आते हुए ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना’ बने मीर साहब ने कहा, ‘अमां क्या चुचके हुए आम की तरह शक्ल बनाए हुए हो? खुश हो कि आप बिजलीबाई दिल खोल कर थिरक रही हैं और सारा शहर अपने दर्द को भूल कर दीवाना बना है। दीवाना बने भी क्यों नहीं क्योंकि मंत्री जी की बिटिया की शादी है। अल्लाह उनका इकबाल बुलन्द करे और ‘बिटिया सदा सुहागन’ रहे।
मीर साहब की बात सुनकर मेरा तन-बदन रोमांचित हो उठा। सोचने लगा काश आज डॉ. लोहिया जिन्दा होते तो यह सब भीड़-भाड़ और चम्मच प्लेटों की झनक-पटक सुनकर कितने खुश होते। फख्र महसूस करते कि अभी भी राजे महाराजों क फिगर जिन्दा है। पीठ ठोंकते हुए बड़े महाराजा को कहते कि वाकई में तुमने इतिहास रच दिया है। मैं सोच ही रहा था कि बगल के बस्ती की बुढ़िया अवतरित होते हुए रूआंसी आवाज़ में कहने लगी "भैय्या हमरी बिटिया का का होई? हमरे पास त कानी कौड़ियो नहीं है। कौनो मददगारो नहीं दिखाई देवत है। एके गो झोपड़ियों रही उसे भी प्राधिकरण वाले गिराये दिये हैं। जौन काट कपट के बचउले रहलीं वहू के लोग छीन झपट के लै गइलन।"

सोचता हूं कि कह दूं बुढ़िया से कि जब तकदीर लिखी जा रही थी तो कहां चली गई थी। अरे कुछ घूस-पात देकर तकदीर लिखने वाले से अच्छी सी तकदीर लिखा लेती कि आज यह नौबत न आती। याद आयी किसी की बात कि लाश वही है सिर्फ कफन बदला है।

एक शक्ल वह है जिस पर सफाई वालों से लेकर बिजलीबाई के साजिन्दे तक तन-मन से लगे हुए हैं। हो क्यों नहीं क्योंकि नगर में ‘राजा की आएगी बारात’ और सब मगन होकर नाचेंगें।

बुढ़िया की दीन दशा पर तरस खाते हुए समझाया ‘माई, सादे सूदे ढंग से बिटिया को निपटा डालो। तुम्हारी औकात तो है नहीं कि सरकारी अमला कील कांटो के साथ तुम्हारे यहां जुटे रहें और न तो डी॰ एम॰ से लेकर सी॰ एम॰ तक को इतनी फुरसत है कि गली को गुलजार कर दें। ऐसे में उस महफिल में यह भी कतई उम्मीद न करो कि बिजलीबाई तुम्हारे आंगने में नाचती रहे। बुढ़िया के आंसू छलछला पड़े। मीर साहब ने कल का दर्द आज के बिजलीबाई की थिरकन में भुला दिया। मैं सिर्फ आंसमा पर परवाज़ करते किसी उड़न खटोले को देखता रहा और देखता रहा सुरक्षा के नाम पर सील की गई चौड़ी सड़क को। भगवान सबका भला करे।

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