शनिवार, 15 नवंबर 2008

बीमारी ठहर के समझने की

अपने यहाँ सबसे बढ़िया बात यह है कि कोई बात समझ में आती है लेकिन ज़रा ठहर कर। वैसे तो यह है सचमुच फसकिलास बात पर क्या कहते हैं वह कि आई. क्यू. वाले वायरस के आधार पर बताने वाले इसे बड़ी ख़तरनाक बीमारी बताते हैं। अपनी फिल्मों में भी जब किसी करेक्टर के मरने का सीन आता है तो बड़ा मज़ा आता है। वहाँ मल्कुनमौत यानी श्रीमान यमराज जी पूरा डॉयलाग करेक्टर के बोलने तक बड़े सब्र के साथ हाथ बाँधे इन्तज़ार करते रहते हैं। डॉयलाग खतम होते ही उन्हे रूह कब्ज करने की याद आती है। बात वही कि ज़रा ठहर कर उनकी समझदानी का दरवाजा खुलता है। इसी तरह अपने मोहल्ले की चौकी के चौके पर बैठे दरोगा बाबू किसी की दर्दे-दास्तान ‘दास्ताने-अलिफलैला’ की तरह सुनते तो बड़े ध्यान से हैं मगर समझ में कुछ न धँसने के कारण फरियादी को धीरे से टरका देते है। कुछ देर बाद जब बड़े हाकिम के फोन की घण्टी घनघनाती है तब दरोगाबाबू की समझ के नट-बोल्ट कसने शुरू हो जाते है। तब रपट लिखने के लिये उनकी कलम दौड़ लगानी शुरू करती है। हर जगह नकली अर्श से फर्श तक यही किस्सा पुराना देखने को मिलता है। अब बतौर नज़ीर हाज़िर है अपनी इकलौती गंगा। ‘राम तेरी गंगा मैली हो गई’ पापियों के पाप धोते-धोते सुनते-सुनते जब यमुना किनारेवालों के कान पक गये तो उसके लिये राष्ट्रीयता के नाम पर खुद गाना शुरू कर दिया ‘गंगा मैय्या तोहें पियरी चढ़इबों’। यह हुई न बात। देर आयद दुरूस्त आयद। क्या किया जाए बीमारी ही ऐसी कमबख्त लग गई है कि समझ में बात आती है मगर ज़रा ठहर कर। अपने बाप-दादे ‘हर हर गंगे’ कहते-कहते मर-खप गये मगर किसी को याद नही आया कि आदिकाल से इस देश में गंगा पतित-पावनी मान कर पूजी जाती रही है। एक अलग पहचान रही है। तभी तो किसी ने गाया था ‘हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है’
इसी तरह जब सुनने में आता है कि फलाँ को मरणोपरान्त मुल्क के सबसे बड़े इनाम-इकराम से नवाज़ा जा रहा है तो ठठाकर हंसने को जी चाहता है। भाई कमाल है कि रहती जिन्दगी तक उसकी क़ाबिलयत तौलने के लिये किसी को तराजू का बटखरा नहीं मिला। तभी तो शायद किसी को याद आया होगा—‘जीना मरना तेरी गली में’, मरने के बाद चर्चा होगा तेरी गली में। है न कमाल की बात कि किसी की प्रतिभा को नवाजने की याद तब आती है जब कोई कब्रिस्तान की चौखट लाँघकर रूहपोश होजाता है। कुछ दिन पहले इसी तरह अपनी गोमती की याद कुछ लोगो को आई तो जुट गये अफसर से लेकर मातहत तक झाड़ू-पंजे के साथ। उत्तम-प्रदेश की लाडली गोमती के दिन बहुरने का सपना देखकर मन-मयूर चिड़ियाघर में नाच उठा। अखबार और चैनलवालों ने फोटू के साथ खूब रेवड़ियाँ बाँटी। आगे सन्नाटे में किसी ने कहा अब एक छोटे से ब्रेक के बाद। इसी तरह अब कनाटप्लेस पर कनकौवे उड़ानेवालों को गंगा मैय्या के प्रति प्यार जागा है। भगवान उनका भला करे। चलिये इसी बहाने एक और आयोग बना। कुछ अपनों के काम का जुगाड़ तो हुआ। अपने राम तो लालू भय्या को दाद देने के लिये छटपटा रहे हैं कि कम से कम अपनी लौह-पट्टिका में गंगा-गोमती दोनो को समोहित करके अपने सच्चे प्यार की ढफली बजा डाली।
लोग उनकी पवित्र धाराओ में अवगाहन करते हुये अपनी यात्रा पूर्ण करके प्रफुल्लित होते हैं। अब जमुना किनारे राजमहलों मे रहने वालों को गंगा मैय्या को पीयरी चढ़ाने की याद आ रही है। चलिये याद तो आयी। कोई बात नही। देर आये दुरूस्त आये। मुमकिन है भय्या ओबामा के गले में बजरंगबली की फोटू देखकर शर्म महसूस हुई हो कि हम जब भारत के रहने वाले हैं, भारत के गीत सुनाते हैं तो फिर क्यों न अपने देवी-देवता और पतित पावनी नदियों के प्रति आस्था प्रकट करें। अजी हम तो सोच-सोच कर परेशान हुये जा रहे हैं कि यह कौन सी ठहर कर समझने की बीमारी पीछे पड़ गयी है।
अपने उत्तम प्रदेश की बात तो सबसे निराली है। अब मार्क करने वाली बात यह है कि कोई अनाज घोटाला हुआ था सन् 2004-05 के दरम्यान पर उसके भूत ने सपना दिखाया 2008 के आखिरी पहर में। राजधानी के एयरकन्डीशन्ड रूम में चैन की नींद में चिहुँक कर उठ बैठना और उस वक्त की दीमक खायी फाइलों को ढूँढना वाजिब है। क्योंकि उसी आधार पर कटघरे की चाभी का गुच्छा मुमकिन होगा। इससे दो बातें होंगी। एक तो गड़े मुर्दे निकालने में टाइम-पास होगा, दूसरे टेढ़ी नज़र वालों का मुँह काला करने का मौका मिल जायेगा। इसी तरह सब धान बाइस पसेरी के पलड़े पर लोग खाकी वर्दी में दूल्हा मियाँ बनाये गये कब मगर अब गौने के वक्त याद आया कि वह सामूहिक शादी ग़लत थी। असल में इसमे दोष किसी का नहीं है। दोष अगर है तो बस उस पुरानी बीमारी का जिसमें ठहर कर बात समझने की होती है। बुखार आया था एक महीने पहले पर इलाज के लिये हकीम साहब को ढूँढने निकले आज। कुछ लोगो की आदत होती है जबरदस्ती की बीमारी पाले रहने की जिससे दूसरे लोग कोई जरूरी काम न बता दें।
आजकल मुल्क में राजभय्या का जलवा अपने शबाब पर दिखाई दे रहा है। हर खबरनवीस और चैनलिया चचाजान राजभय्या को चमकाने में लगे हैं। उधर पुतला फूँकने और रिजाइन देने का तमाशा भी खूब चल रहा है। पर जमुना पार वालों को अभी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। शायद यही समझने समझाने के लिये गंगा मैय्या को चुनरी चढ़ाने का स्वांग रचा जा रहा है। राष्ट्रीयता की ‘झीनी-झीनी रे बीनी चुनरिया’। लेकिन अपने राजभय्या को वह गाना याद नहीं आ रहा है कि ‘मेरा नाम राजू घराना अनाम, बहती है गंगा जहाँ मेरा धाम’। यह तो बात सच मानना चाहिये कि समझ में आयेगा मगर ज़रा ठहर कर। क्या किया जाये अपने देश में मौसम ही कुछ ऐसा चल रहा है।
कलम को कबूतर समझकर उड़ाते हुये अभी गाना ही शुरू किया था कबूतर जा जा जा...तभी नुक्कड़ वाले मीर साहब अपने जनाब मीरसाहब मरहूम वज़ीरेतालीम ‘मौलाना अबुल कलाम आज़ाद’ के यौमे-सालगिरह के जश्न में शिरकत करने जा रहे हैं। ढेर सारी अपनी शुभकामनाँये मीरसाहब के हवाले करने के बाद सोचने लगा कि लगभग पचास सालों के बाद अचानक मौलाना की याद मीरसाहब को कैसे दीवाना बना रही है। फिर अपने-आप नीली छतरी वाले ने मेरे थके दिमाग़ के दरवाज़े से झाँकते हुये समझाया कि समझ का फेरा है। बात समझ में तो आती मगर ज़रा ठहर कर। अब जब बीमारी लग ही गई तो कोई क्या कर सकता है।