इस हैरत भरी दुनिया में सब मुमकिन है, नामुमकिन कुछ भी नहीं। ‘मिडास और मैजिक गोल्ड’ जैसी कहानियाँ तथा नेपाल के पारस पत्थरों के कमाल की
किवदंतिया भले हम-सब को कपोल-कल्पित लगे किन्तु हाथ कंगन को आरसी क्या...!
पुराने लोगों ने ‘देवकी नन्दन खत्री’ लिखित ‘चंद्रकांता-संतति’
ज़रूर पढ़ा होगा। ऐय्यारी और तिलिस्म का ऐसा
बेमिसाल उपन्यास कि पढ़ते-पढ़ते लोग चौंक उठते थे। खैर वह उस जमाने की बात थी। ज़माना
आया और चला गया। अब जो ज़माना बतौर बेश-क़ीमती नियामत ऊपरवाले ने हम सब को अता फरमाया
है, उसका तो जवाब नहीं। आज तो
ज़िंदा खड़ा वन पीस आदमी स्वर्गवासी और जो सचमुच स्वर्गवासी हो गया उसे भरी दुपहरिया
में भिंडी खरीदते देखा जाता है। यह किसी विज्ञान का कमाल नहीं बल्कि आदमी की फितरत,
ऐय्यारी या तिलिस्म का अजब कारनामा है। ऐसे में
यदि लोहे की सीढ़ी पर सोने का सिंहासन स्थापित हो जाता है तो आश्चर्य नहीं करना
चाहिए।