बुधवार, 17 अप्रैल 2013

राग दरबारी और मालकोश की जुगलबंदी

ज़्यादातर संगीत-प्रेमी जानते होंगे कि इन दोनों रागों का संगीत में अपना अलग-अलग महत्व है। यह ज़रूर है कि बदलते वक्त के मिज़ाज के साथ इनके विलंबित और द्रुत लय में आधुनिक संगीतकारों ने बदलाव लाने की पुरज़ोर कोशिश की है। वैसे पहले विलंबित और बाद में द्रुत गाया जाता रहा है। ज़माना ही कुछ ऐसा आ गया है कि हर चीज़ घासलेटी हो गई है। आज के डुप्लीकेट टेक्निकल संगीतकारों ने दोनों रागों को इस तरह तोड़-मरोड़ कर पेश करने की जुगत भिड़ाई है कि उन्हे राग दरबारी से दरबार में सुनहरी कुर्सी हासिल हो सके और फिर राग मालकोश गा कर माल का कोष यानी मालामाल हो सकें।