बुधवार, 21 सितंबर 2011

थोड़ा संभल कर बोले

आज के समाचारपत्र में अपने माननीय गृहमन्त्रीजी के बेबाक बयान को पढ़ कर दिल बाग-बाग हो उठा। वैसे अन्ना के अनशन के समय भी उनका बयान काबिलेतारीफ रहा मगर मेरा अपना निजी ख्याल है कि वह थोड़ा संभाल कर बोले तो सोने पर सुहागा हो सकता है। इसलिए लिख रहा हूँ कि उनके बयान को सारी दुनिया सुन रही है। मैं न तो नक्सलियों का हिमायती रहा हूँ और न ही आतंकवादियों का। हिंसा किसी प्रकार की हो उसका विरोध करता रहा हूँ। किन्तु हमारे माननीय गृहमंत्री ने आतंकवादियों से ज़्यादा खतरनाक नक्सलियों को बता कर अपने घर की पोल खोल दुनिया को हंसने का मौका दे दिया। लोग यही कहेंगे कि जो मुल्क अपने घर मे छुपे दुश्मन से नहीं निपट सकता वह बाहर के इशारे पर खूंरेजी करते आतंकवादियों से कैसे निपटेगा ?अपने दिल पर हाथ रख कर चिंता करें कि उन्होने उतना प्रयास किया या उतना धन खर्च किया जितना पड़ोसी मुल्क से आए किराए के टट्टू आतंकवादियों के दमन पर खर्च कर रहें हैं? शांति और सदभावना का राग अलापते हुए उन इन्सानियत के खुख्वार आतंकवादियों से न जाने कितनी बार शांतिवार्ता करते चले आ रहें हैं जबकि यह जानते हैं कि कुत्ते की दुम सौ बरस तक पाइप में रखने के बाद भी सीधी नहीं हो सकती है। उनके लाडले कपूतों पर सलाखों के पीछे कितना खर्च किया जा रहा है जिसका कोई हिसाब नहीं है। अफसोस तो यह है कि अपने ही देश में जन्मे पले-बढ़े दबे कुचले लोगों के गुमराह होने का कारण न तो गृहमंत्री ने समझा और न किसी मनोचिकित्सक ने। इलाज समझ में भी आया तो सिर्फ संगीनों के साये में उन्हे मार गिराना। हमारे आला जनाब गृहमंत्री और उनके दूरदर्शी मुसाहिबों ने कभी समझने कि ज़हमत नहीं उठाई कि आखिर वह कौन सा कारण था जो एक छोटे से ग्राम में जन्मी नक्सली हिंसा ने आधे से ज़्यादा देश को अपने चपेट मे ले लिया है और जिसमें समाज के निचले तपके के लोग ही हैं। माननीय गृहमंत्री और उनके काबिल सलाहकारों को थोड़ा मंथन करने की ज़रूरत है कि अपने ही देश में बसने वालों के सामने किस बात ने मजबूर कर दिया जो उन्हे हथियारों से मुहब्बत हो गई है। स्वाधीनता-संग्राम का इतिहास गवाह है कि हमेशा समाज दो हिस्सों मे बंटा रहा , एक गरमदल और दूसरा नरमदल। लोग बताते हैं कि उन्हे गरमदल के अंतर्गत मौजूदा व्यवस्था से संतोष नहीं है और उनके नज़रिये से समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए हथियार ही एकमात्र साधन हो सकता है। जिसे कम से कम उनसे मनोवैज्ञानिक तरीके से वार्ता करने का प्रयास किया जाना आवश्यक है क्योंकि आखिर उन्हे अपनी माटी से लगाव है और अपनी जन्मभूमि से बेपनाह प्यार है। पंजाब मे पनपा उग्रवाद इसका जीता-जागता उदाहरण है। लेकिन इस मौके पर आतंकवाद को कम और देश में देश की व्यवस्था से असन्तुष्ट लोगों को ज़्यादा गुनहगार ठहराना एक गृहमंत्री के लिए उचित नहीं है । ऐसे वक्तव्य से उन खुख्वार विदेशी आतंकवादियों का मनोबल ऊंचा हो सकता है और देश में किसी वजह से जन्मे मनोरोग की सही रूप से चिकित्सा नहीं हो सकेगी, उल्टे देश की छवि धूमिल हो सकती है। इसलिए जो कुछ मुल्क के अलंबरदारों द्वारा बोला जाय उसे बहुत सोच-समझ कर बोला जाय ,उन्हे सही रास्ते पर लाना आसान है क्योंकि वे अपने हैं। उन्हे इस देश से नहीं बल्कि व्यवस्था से विरोध है। उन्हे विकास चाहिए, भ्रष्टाचार के रूप में विनाश नहीं।