रविवार, 6 जुलाई 2008

चैनलिया चम्पाकली की करामात

बेचारा अपना भज्जी भाई। किरकिट की दुनिया में गिरगिट की तरह रंग क्या बदला कि चैनलों की चम्पाकली को भज्जी की धज्जी उड़ाते देर नहीं लगी। तमाचे को तमंचा बना कर बेचारे को विकेट के पीछे खड़े होकर गाने पर मजबूर कर दिया कि आँधियाँ ग़म की यूँ चली कि बाग़ ही उजड़ कर रह गए भाई वही हाल हुआ कि जो कभी चौके छक्के मार कर लोगों को चौकांता रहा, मिनटों सेकेण्डों में बेचारे के छक्के छूट गए। वाह री दुनिया, वाह रे ज़माने। चैनलों की चम्पाकली ऐसी बदली कि बेचारे को भरी जवानी में वनवासी हो जाना पड़ा। चम्पाकलिया ने ऐसा त्रिया-चरित्तर दिखाया कि अपने हुए पराये, दुश्मन हुआ जमाना। कोई कुछ कहे पर मुझे तो भज्जी की धज्जी उड़ते देख और तमाचे को तमंचा सुनकर जरा भी रास नहीं आ रहा है। जैसे अपने लख्ते जिगर रमफेरवा की माई के जहाँ ऐसी-वैसी बात कान में पड़ी कि मुहल्ले भर में बांट आती है बस वही आदत चैनलिया चम्पाकली की देखने में आई। यहाँ तो अपने रमफेरवा की दुल्हनियां कभी कोपभवन में जा बैठती है तो उसके मायके वालो तक से कोई बात नहीं बताता हूँ क्योंकि भाई जग हंसाई मुझे बिल्कुल नहीं आती है।

अब चम्पाकली के तेज चैनल और किरकिट पर धिरकिट धिन्ना बजाने वालो की बड़ी बात है। उनके मुँह कौन लगे? लेकिन इतना कहने के लिए आत्मा जरूर कहती है कि सबसे पहले चपत, चाँटा, लप्पड़, थप्पड़ और झापड़ में फरक करके कोई कदम उठाना चाहिए। यूँ ही तमाचे को तमँचा नहीं समझ लेना चाहिए। खेल-खेल में तो सब चलता है। बचपन में अपने स्कूल के खेलौड़िया मास्टर ने किसी से मारपीट होने पर डेढ घंटा बैठा कर समझाया था कि बेटा खेल में सब चलता है। हुआ वही कि हाथ मिलाने के बाद दो बार जब मैच खेला तो वही प्यार मोहब्बत से। भूल गये झगड़ा-लड़ाई और लप्पड़-थप्पड़। मास्टर साहब ने गुड़ैहिया जलेबी खिलाते हुये कहा कि इसी को कहते हैं स्पोर्टमैन स्प्रिट।

ताज्जुब तो भाई यह है कि इससे भी बड़े-बड़े काण्ड रोज मुल्क में होते रहते हैं लेकिन न अपनी चैनलिया चम्पाकली को उसे बार-बार दिखाने की फुरसत होती है और न तो किरकिट के दीवान-ए-खास में इन्साफ की इस मुकद्दस तराजू की कसम खाने का वक्त होता है।

अपनी चैनलिया चम्पाकली रोज किसी गरीब की झोपड़ी को उजाड़ कर किसी दबंग द्वारा पंच सितारा होटल तामीर कराने को देखती सुनती है। रोज परीक्षा हाल के बाहर किसी आधुनिक एकलव्य के तमाचे को तंमचा बनाकर किसी मार्डन द्रोणाचार्य के सीने से सटाते देखती है या किसी माननीय को मानवीय मूल्यों को दरकिनार कर भ्रष्ट से भ्रष्ट आचरण करते पाया जाता है। चम्पाकली जोर का झटका धीरे से देकर चुप्पी साध लेती है। बार-बार चैनलिया चम्पाकली वो सब दिखाने के बजाए राखी सांवत और मल्लिका शेरावत का बाइसकोप दिखाना ज्यादा पसन्द आता है। बात धरी की धरी रह जाती है क्योंकि वहाँ ग्लैमर तो होता नहीं। ज्यादा से ज्यादा शस्स्स्स... कोई हैया क्राइम टाइम से लेकर भोंडी कॉमेडी दिखा कर बड़े लोगों द्वारा किए गये क्राइम पर चुपके से पर्दा डालने की कोशिश होती है। रही बात भज्जी की धज्जी उड़ाने की खबर तो उसमें ग्लैमरस रस टपकता है। बात देश-विदेश तक पहुँचती है। चैनलिया चम्पाकली खबरों के खैबर दर्रे में पहुँचने वाली नम्बर वन बन जाती है।

फैसला इतनी जल्दी। फैसला करने के पहले बिना चपत, चाँटा, तमाचा, लप्पड़ और झापड़ में भेद किये या बारीकी समझे संतू के आँसू को अंगारे बना दिया। भज्जी भाई के तमाचे को तमंचा घोषित कर दिया। काश फैसले की यही जल्दबाजी किसी सिपहिया के रिक्शेवाले को लप्पड़ थप्पड़ मारने पर किया जाता। सरकारी सम्पति पर किसी दबंग द्वारा चूना लगाने पर किया जाता तो किसी को काहे का रोना होता। खेल न हुआ रेल के डिब्बे में पड़ी डकैती हो गयी। वहाँ भी मुआवजे का सब्जबाग देख कर फैसले का इन्तज़ार करना होता है।

अपनी तो दिली तमन्ना है कि भज्जी और संतू भय्या अपने बचपन के दिन भुला न दें। समझ बैठे कि रैगिंगजो सरकारी कन्ट्रोल से बाहर है के अन्तर्गत एक सीनियर ने अपने जूनियर को धीरे से एक चपत जड़ दी। अब बड़ों को चैनलिया चम्पाकली की बात में न आकर दोनों को स्पोर्टस मैनस्प्रिट का पाठ पढ़ावे जिससे दुनिया में दोनों ढोल-बाजे ढम-ढम गाते रहें और अपनी कामयाबी का परचम लहराते रहें। किरकिट मैय्या के सामने धा धिरकिट धिन्ना धाकी थाप पर नाचते कूदते रहें।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें