यही हाल तो है अपने
खुशनुमा शहर का कि उपभोक्ता बेचारे रोते हैं और कमबख्त बिजली हँसती रहती है। हँसते
हैं बिजली के हर ठुमके पर उसके साज़िंदे जो फेसू के खंडरहरनुमा हाल मे बैठ कर
बे-वक़्त की शहनाई बजाने और मुफ्त चाय की चुस्की लेने में मस्त रहते हैं। एक दिन
फेसू के अँगने मे लगे विशाल पीपल के पेड़ के नीचे बने टुटहे चबूतरे पर शाम के
झुरमुटे में बनी-ठनी बिजली से मुलाक़ात हो गई। थोड़ा सन्नाटा था थोड़ी चहल-पहल।
मौका-महल देख कर पूछ लिया ‘कभी तुम्हें अपने रोते बिलखते
उपभोक्ताओं पर तरस नहीं आता जो दिन भर यहाँ बिलों की मरम्मत कराने में तुम्हारी
कमाई खाने वालों के तलुए सहलाने मे लगे रहते हैं?
‘तरस
भी आता है और रहम भी, पर क्या करें? फेसू के फ़साने में जो फँसी तो फँसती चली गई’।
अब तो वही गाना
गाने को जी चाहता है कि ‘इन्ही लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा’। उसी
दुपट्टे के साथ शर्म-हया सब चली गई। यहाँ तरस के नाम पर
लोगों को आता है सिर्फ नचाना और उनकी मासूमियत पर ठहाका
लगाना। उन बेचारे लाचार बुड्ढे-बुढ़ियों और विकलांगों की दशा पर रोने को जी चाहता
है जो हाकिमों और बाबू साहबान के पीछे-पीछे बिल लिए बिलबिलाते हुए अरदास करते देखे
जाते हैं। फेसू के ये मरदुए माहिर फनकार उनके लंबे बिलों की मरम्मत करने को कौन
कहे जो झिड़की सुनाते हैं कि तौबा! सुना नहीं जाता है। बेचारों कि फरियाद कोई गैरकानूनी भी नहीं होती है। बस उनकी इल्तजा इतनी सी होती है
कि पिछला बिल जो उनके मौजूदा बिल में अदा करने के
बावजूद जुड़ कर आ जाता है उसे बकायदे ठीक करा दिया जाय। कुछ दरियादिली का नाटक
करके बहलाने वाले एक चिड़िया बैठा कर उस बेचारे को किसी तरह टरका देते हैं पर अगले
महीने फिर वही रोना। तुमने नेकदिली से पूछा मैंने नेक दिल से सबकुछ बता दिया। आखिर मेरे सीने में भी तो एक
दिल धड़कता है। दर्देदिल किसे सुनाए? पापी पेट का सवाल है। उनके इशारे पर उन्ही के
साज और आवाज़ पर फेसू के इस सजी महफिल में नाचना पड़ता
है क्योंकि सुना है कि अपने फेसू के फंदे में जो फंसा उसका उबरना बहुत मुश्किल हो जाता है। लेकिन महफ़िल खत्म होने के बाद जब थोड़ा सुस्ताने बैठती हूँ तो वही
बिल लिए बिलबिलाते विवश आदमजात कीड़ों की सीन सामने आ जाती है जो दिन से शाम तक
फेसू के फंदे में फंसे दिखाई देते हैं और लोग उन्हे सुन्दर सा नाम ‘उपभोक्ता’ का देकर
खुश करते हैं मगर मेरे दिलो-दिमाग में गूँजा करता है “उपभोक्ता रोता है और बिजली हँसती है। बाख़ुदा उस वक़्त
रोने के सिवा कुछ नहीं सूझता है। दिल तड़प उठता है”
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