शनिवार, 30 जुलाई 2011

चला चलीं स्कुलवा की ओर…

सावन का महीना पवन करे सोर। महीना तो जरूर सावन का है मगर सोर के बदले शोर सुनाई दे रहा है डग्गामार वाहनो, नेताओं के निन्यानबे परसेंट झूठे वायदों और पुलिसिया झूठी हनक का। उधर अपना लख्तेजिगर रमफेरवा काले-कजरारे बादलों को देखकर गाता है कारे बदरा तू न जा न जा,’ इधर हाकिम लोग बेहाल मसटरवन के साथ फटीचर बच्चों के दुबले-पतले हाथों में झंडी-झंडे थमा कर नारेबाजी कराते हैं स्कूल चलो, स्कूल चलो, वहाँ दोपहरिया मे भोजन मुफ्त मिलेगा’ यानी एक टिकट में दो शो’ या दो के साथ एक फ्री। पर मैंने बड़े ध्यान से देखा कि उस भीड़ में ज़्यादातर बच्चे रिक्शावालों, खोंचेवालों या दूसरे गरीब-गुरबों के होते हैं जो लापरवाही के दामन में रोते हुए सरकारी या अर्ध-सरकारी प्राइमरी मिडिल स्कूलों में पढ़ते हैं। क्योंकि उन्हे सरकारी चाबुक चलने का डर बना रहता है।
अब पता नहीं मेरी नज़र का धोखा हो या आधी हक़ीक़त-आधा फसाना स्कूल चलो रैली में अंग्रेजी के पुछल्ले बने माननीयों और शहर के रईसजादों के चमचमाते स्कूलों के बच्चों को नहीं देखा। शहर के हाकिमों के नन्हें-मुन्ने दुलारे और हसीन दिखने वाले बच्चे भी देखने को नहीं मिले। शायद इसीलिए कभी-कभी ख्याल आता है कि भारत के साथ अपना शहर भी दो भागो मे बंट गया है और कानून भी। क्या ये सरकारी स्कूल सिर्फ हम जैसे गरीबों और मजदूरों के लिए हैं और वे हाई-फाई अर्श को छूनेवाले स्कूल शहर के हाकिमों व बेशकीमती सवारियों पर चलने वालों के लिए। बात वाज़िब है कि उनके बड़े-बड़े ख्वाब देखने वाले लाडले भला बरसते पानी और कीचड़ भरी सड़कों पर  फटीचर बच्चों के साथ कहाँ चल सकते हैं? कहते हैं कि बिना दरिया में उतरे तैरना नहीं आता है उसी तरह जब तक उन बड़े नाम वालों के बच्चे इन सरकारी प्राइमरी या मिडिल स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे तब तक अमीरी और गरीबी के बीच की गहरी खाई पटेगी नहीं। न तो उन बड़े नामवालों को जो सरकार की मशीन कहलाने का दम भरते हैं, उन्हे ऐसे स्कूलों को परवान चढ़ाने की फुर्सत मिलेगी। न तो इनका वही महत्व लोगों की समझ में आएगा जो बड़ी-कीमती इमारतों वाले स्कूलों का लोग समझते हैं ,भले वहाँ सिर्फ शो-केस ही शो-केस सजे-सजाये देखने को मिलेंबेचारी अपनी सीधी-सादी भोली-भाली सरकार को भले ही लाखों का चूना लगता रहे। थोड़ा लिखा ज़्यादा खुद देख-सुन कर समझें और सूरसती माई से अरज करें कि हे माई इन आँख के अंधे नाम नैनसुखों को अक्ल दो।

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