शनिवार, 30 जुलाई 2011

साकेत का संकेत

सुना है कि कुछ ही दिन पहले अपने शहर के साकेत की सुनहरी बगिया में किसी बरखा-बहार का जश्न मनाने वाली राजनैतिक पार्टी के नामी-गिरामी लोगों का मजमा लगा था जिसने तरह-तरह के तराने सुनाये गए और दूसरों के तरानों की हंसी उड़ाई गई। खैर यह तो आम बात है की हम पंछी एक डाल के होते हुए भी तराने अलग-अलग होते हैं और अपने तराने की खूब तारीफ करते हैं। उस दिन  सरयू तीरे से आते हुए महाऋषि विश्वामित्र मिल गए तो मैंने परंपरानुसार उनके चरण स्पर्श किया। मेरे कुछ बोलने के पहले ही उन्होने पूछ लिया  वत्स, माता सरस्वती के इस भव्य मंदिर के सामने मार्ग पर असंख्य चार चक्रीय वाहनों का तांता क्यों लगाया गया है?
आदरपूर्वक अपनी जानकारी बताते हुए कहा श्रद्धयेवर, ये वाहन उन  राज़दार  राजनेताओं के हैं जो इस लोकतान्त्रिक युग में अवधप्रदेश में अपने दल के द्वारा दूध-दधि की धारा बहाने के लिए रणनीति बनाने को इकट्ठे हुए हैं। महर्षि विश्वामित्र  कुछ देर शान्त भाव से खड़े रहे फिर खिन्न भाव से बोलेआश्चर्य हो रहा है वत्स कि विद्या कि देवी सरस्वती के पवित्र मंदिर में व्यवहारिक राजनीति का कुरुछेत्र? विद्या के अंतर्गत सैद्धांतिक राजनीति का पठन–पाठन तो समझ में आता है किन्तु व्यवहारिक राजनीति के अंतर्गत रणनीति बनाना वहाँ मेरे विचार में शोभा नहीं देता है। तुम्हें याद होगा कि दशरथ- पुत्रों को मैंने आश्रम में सैद्धांतिक राजनीति अर्थात राजनीति शास्त्र की शिक्षा दिया था किन्तु प्रायोगिक राजनीति के लिए कहीं दूर निर्जन वन में ले गया था। फिर वत्स सुना है कि देश में अनेक राजनैतिक दलों का गठन हो गया है जिनमे परस्पर संघर्ष होने कि संभावना बनी रहती है। ऐसी दशा मे माँ सरस्वती मंदिर के महापुरोहित की छवि धूमिल होने की संभावना हो सकती है अथवा उन पर किसी दल विशेष का पक्षधर होने का आरोप लग सकता है। फिर वहाँ शिक्षा नहीं राजनैतिक दलों के कुत्सित विचारों का केन्द्र बन सकता है । सच्चा शिक्षक वही कहलाता है जो किसी शासक के हाथ की कठपुतली नहीं बनता है क्योंकि वह न जाने कितने शासकों को बनाने का अपूर्व ज्ञान रखता है। उसकी इष्टदेवी श्वेत हंसवाहिनी माँ सरस्वती होती है इसलिए उसका ह्रदय निर्मल और निष्पक्ष होना चाहिए मैं किसी चिंतन डूबा ही था की विश्वामित्र अंतर्ध्यान हो गए। आँख खुली तो सामने रमफेरवा किसी का नाम लेकर उसे अबकी चुनाव मे वोट देने की पैरवी कर रहा था।

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